Saturday 7 May 2016

शिवताण्डवस्तोत्रम्

शिव ताण्डव स्तोत्र

महान विद्वान व परम शिवभक्त लंकापति रावण द्वारा रचित एक काव्य रचना है।

जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले गलेऽवलम्ब्यलम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम्॥

डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ॥१॥

जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी- विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्द्धनि ॥

धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम॥२॥

धराधरेन्द्रनन्दिनीविलासबन्धुबन्धुर- स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे॥

कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्दिगम्बरे मनोविनोदमेतु वस्तुनि॥३॥

जटाभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे॥

मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीय मे दुरे मनोविनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि॥४॥

सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर- प्रसूनधूलिधोरणीविधूसराङ्घ्रिपीठभूः॥

भुजङ्गराजमालयानिबद्धजाटजूटक: श्रियै चिराय जायतां चकोर बन्धुशेखरः॥५॥

ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा निपीत पञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम्॥

सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं महाकपालिसम्पदे शिरोजटालमस्तुनः॥६॥

करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल- द्धनञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके॥

धराधरेन्द्रनन्दिनी कुचाग्रचित्रपत्रक- प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम॥७॥

नवीनमेघमण्डली निरुद्धदुर्धरस्फुरत्- कुहूनिशीथिनी तमः प्रबन्धबद्धकन्धरः॥

निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरन्धरः॥८॥

प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा- वलम्बिकण्ठकन्दली रुचिप्रबद्धकन्धरम्॥

स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदांधकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे॥९॥

अखर्वसर्वमङ्गलाकलाकदम्बमञ्जरी रसप्रवाहमाधुरी विजृम्भणा मधुव्रतम्॥

स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे॥१०॥

जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वसद्- विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट्॥

धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल- ध्वनिक्रमप्रवर्तितप्रचण्डताण्डवः शिवः॥११॥

दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्- गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः॥

तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समप्रवर्तयन्मनः सदाशिवं भजाम्यहम्॥१२॥

कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन् विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरस्थमञ्जलिं वहन्॥

विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मन्त्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम्॥१३॥

निलिम्पनाथनागरी कदम्बमौलमल्लिका निगुम्फनिर्भक्षरन्मधूष्णिकामनोहरः॥

तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनीं महर्निशं परिश्रयपरम्पदं तदङ्गजत्विषां चयः ॥१४॥

प्रचण्डवाडवानलप्रभाशुभप्रचारणी महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूतजल्पना॥

विमुक्तवामलोचनो विवाहकालिकध्वनिः शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम्‌ ॥१५॥

इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं पठन्स्मरन्‌ ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्‌॥

हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथागतिं विमोहनं हि देहीनां सुशङ्करस्य चिन्तनम्॥१६॥

पूजाऽवसानसमये दशवक्त्रगीतं यः शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे॥

तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां लक्ष्मीं सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः॥१७॥

इति श्रीरावणकृतं शिवताण्डवस्तोत्रं सम्पूर्णम्॥